इतिहास
झाबुआ स्टेट भारत में ब्रिटिश राज के दौरान प्रिंसली स्टेट मे से एक राज्य था। इस राज्य की स्थापना केशवदास या किशनदास द्वारा 1584 ई़ में की गई थी। उन्हें राजा की पदवी मुगल बादशाह अकबर द्वारा दी गई थी।
वर्ष 1940-1941 की अवधि मे झाबुआ स्टेट में उच्च न्यायालय, जिला एवं सत्र न्यायालय, निजामत मजिस्ट्रेट या मुंसिफ कोर्ट कार्यरत थी। उच्च न्यायालय के रुप मे रायबहादुर पं. रामनारायण मुल्ला कार्यरत थे। जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रुप में मुल्ला गुलाम अली बी.ए.एल.एल.बी कार्यरत थे। निजामत श्री पीटी गुप्ता बी.ए.एल.एल.बी जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा रहा था, जिनके पास प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट एवं अधीनस्थ जज की शक्तियां थी। थांदला, हनुमानगढ़, रानापुर, रम्भापुर में मजिस्ट्रेट और मुंसिफ कोर्ट थी। झाबुआ में सेकण्ड क्लास मजिस्ट्रेट की कोर्ट थी।
दिनांक 22-02-1941 को श्रीमती ए किर्कब्रीड द्वारा झाबुआ लॉ कोर्टस का उद्घाटन किया गया। भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात् राज्य का भारत में विलय हुआ। प्रारंभ में झाबुआ कोर्ट रतलाम एवं धार जिला एवं सत्र के अधीन थी। पश्चात में दिंनाक 14-11-1969 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश की पदस्थापना हुई और श्री बी एन सक्सेना प्रथम जिला एवं सत्र न्यायाधीश के रुप में कार्यरत हुए। वर्तमान में प्रधान जिला एवं न्यायाधीश के रुप में श्रीमती विधि सक्सेना पदस्थ हैं। पेटलावद में अपर जिला जज, सिविल जज वर्ग-1 और वर्ग-2 तथा थांदला में सिविल जज वर्ग-1 एवं वर्ग-2 के न्यायालय कार्यरत है।
महत्वपूर्ण विचारण एवं फैसले
झाबुआ नन रेप कैस :- दिनांक 23-24 सितम्बर 1998 की रात में कुछ लोगों का एक समूह प्रीतिशरण सेवा केन्द्र नवापाड़ा, जो झाबुआ मुख्यालय से 25 किमी दूर है, में घुस गया, उन्होंने वहां लुट-पाट की वहां मौजूद 4 ननों से बलात्कार किया। इस मामले में विचारण उपरांत वर्ष 2001 में तत्कालीन सत्र न्यायाधीश श्री के सी जैन द्वारा फैसला सुनाते हुए 17 आरोपियों केा आजीवन कारावास के दण्ड से दंडित किया गया। .